फायर सीजन शुरू होते ही जंगलों में आगजनी की घटनायें आम हो जाती है। और वन विभाग के वनाग्नि की रोकथाम के दावे हवाई सावित हो जाते है।वन विभाग हर साल वनों की आग को बूझाने के लिए बडे- बडे दावे और वादे तो करता है,लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं दिखाई देता है। वर्ष 2019 में भले ही पिछले सालां की तुलाना में अभी तक जंगलों में आग के कम मामले सामने आये हो लेकिन अभी तक 100 हेक्टयर से अधिक वन संम्पदा जलकर खाक हो चुकी है। जंगलों में आग लगने के प्रमुख कारण क्या है .
उत्तराखंड में लगभग 47 प्रतिसत से अधिक भू -भाग पर जंगल मौजूद है। जलवायु परवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जंगलों का महत्व हर तरह से महत्वपूर्ण है।लेकिन विभाग की सुस्ती और शासन की हीला हवाली के चलते हर साल अरबां रूपये की बेसकीमती वन संम्पदा जलकर खाक हो जाती है।इस आग के लिए आखिर वन विभाग के अलावा कौन दोषी हो सकता है। लेकिन वन विभाग के अधिकारी इसे मानने के लिए तैयार ही नहीं होते।उल्टा वनाग्नि के लिए क्षेत्रीय व स्थानीय लोगों को दोषी ठहराते है।अधिकारियां की माने तो ग्रामीण चीड़ के जंगलों में अच्छी धास के लिए स्यंम आग लगाते है।और सरकार ने वन पचायतों में लोंगों को और ज्यादा अधिकार दिये है।
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वहीं पर्यावरण विदां की राय वनाग्नि पर अलग दिखती है,उनका मानना है कि सरकार ने जब से जंगलों पर स्थानीय लोगों का हक छीना है तब से वनाग्नि की और ज्यादा घटनायें सामने आयी है।इसका प्रमुख कारण लोगों में आक्रोस है कि हमारे जंगलों को हमस े छीन दिया गया है। जिनसे अब स्थानीय लोगों को काई लेना देना नहीं रहा इसलिए भी कई बार लोग जंगलों में लापरवाही से आग लगा देतें है।और चीड़ के जंगल वनाग्नि के कारक है जिसके कारण 90 प्रतिसत आग जंगलों में लगती है।
हर साल वनों की आग समाज सेवी और बुद्विजीवियों के लिए चिन्तन का सबब बना हुआ है। बुद्विजीवियों का कहना है कि जंगलों के आग की जिम्मेदारी सीधे तौर पर वन विभाग की होती है।समय- समय पर वन विभाग पर अपनी नामयाबी छूपने के लिए आरोप भी लगते है।लेकिन जंगलों की आग तब तक कम नहीं हो सकती जब तक विभाग सालभर तैयारी न करें और स्थानीय लोगों को वन पंचायतों का अधिकार न मिलें। इसके लिए सरकारों को रूकावट पैदा करने वाले कानूनों में संसाधन की आवश्यकता है।
वन विशेषज्ञों की माने तो आज के समय वन विभाग वनाग्नि को लेकर काफी सजग रहता है।यह धारणा गलत है कि वन विभाग अपनी कमियों को छूपने के लिए वनों को आग में झोकता है। आज के सूचना क्रांति के समय में ऐसा किया जाना असंभव सा है।
भले ही वन विभाग वनाग्नि को रोकने के लाख दावे करता हो लेकिन सच्चाई हर साल धरातल पर दिखाई देती है।अपनी कमियां को छूपाने के लिए विभाग कभी स्थानीय लोगों और और कभी संसाधनों का रोना रोता तो रहता है लेकिन कमियां कैसे पूरी हो इसके लिए गहराई से नहीं सोचा जाता है।अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले वाले समय में विभाग अपनी गलतियां से सबक लेता है या जंगल यूं ही जलते रहगे।
-भानु प्रकाश नेगी ।